शनि शिंगनापुर के शनि मंदिर में कुछ महिलाओं के जबरिया प्रवेश की कोशिश के बाद
हर जगह यह चर्चा छिड़ी हुयी है, कुछ दिनों पहले भी किसी महिला ने वहां पर जबरदस्ती
प्रवेश कर तेल चढ़ाया था तब भी खूब बवाल हुआ था। इस एक पूजास्थल की घटना ने देश के
सभी पूजा स्थलों में इस तरह के लैंगिक भेदभाव को लेकर खूब चर्चा हो रही है।
एक तरफ महिला अधिकारों के पैरोकार इसे पुरुष सत्तात्मक विचारधारा द्वारा खड़ी
की गई बंदिशे बता रहे तो दूसरी ओर मंदिर प्रशासन एवं उनके समर्थक कभी पुरातन
परंपरा, ग्रंथों में उल्लेख तो कभी शनि की शक्ति का स्त्रियों पर नकारात्मक प्रभाव
को लेकर इस प्रथा को सही बता रहे हैं.ये निर्णय लेने का अधिकार स्त्रियों को होना
चाहिए की वे वहां पर जाएँ या ना जाएँ , उनकी भलाई के नाम पर बंदिश लगाना
पुरुषप्रधान समाज चाहने वाली कुंठित मानसिकता का प्रतीक है ।
इस घटनाक्रम में मुझे मीरा के जीवन की वो घटना याद आ गयी जिसमे कृष्ण के प्रेम
में दीवानी मीरा मथुरा में राधाकृष्ण मंदिर पहुंची जहाँ स्त्रियों का प्रवेश
वर्जित था। उसका पुजारी सावहगन स्त्रियों को नहीं देखता था। तीस साल से उस मंदिर
में कोई स्त्री प्रवेश नहीं कर सकी थी। उसे रोकने द्वारपाल खड़े किये गए थे लेकिन
वो भी उसकी भक्ति देख उसके गीतों में डूब गए और मीरा मंदिर के अंदर चली गयी. पुजारी
आरती उतार रहा था। उसने स्त्री को देखा। उसके हाथ से आरती छूटकर गिर पडी। और
क्रोधित हो कर कहा कि ‘ए स्त्री, क्या तुझे द्वारपालों ने नहीं रोका? क्या तुझे मालूम नहीं है कि इस मंदिर में स्त्री का प्रवेश
निषिद्ध है। द्वार पर बड़े—बड़े अक्षरों में लिखा है कि स्त्री—प्रवेश निषिद्ध है। तूने प्रवेश कैसे किया? मैं स्त्री को नहीं देखता
हूं। तूने मेरी तीस साल की तपश्चर्या नष्ट कर दी।’
मीरा ने चुपचाप सुना और कहा कि मैं तो सोचती थी कि
तुम कृष्ण के भक्त हो, लेकिन मैं गलती में थी। क्योंकि भक्त तो मानता है एक ही पुरुष है—वह परमात्मा, वह कृष्ण। बाकी तो हम सब
गोपियां हैं। तो तुम सोचते हो दुनिया में दो पुरुष हैं—एक कृष्ण और एक तुम? और क्या खाक तुम पुरुष हो। कृष्ण तो स्त्रियों से
नहीं डरे। स्त्रियां नाचती रहीं उनके चारों तरफ। राधा की कमर में हाथ डालकर वे
बांसुरी बजाते रहे। उनके तुम भक्त हो, जरा मूर्ति तो देखो! वहां भी राधा खडी थी मूर्ति में कृष्ण
के बगल में ही। बांसुरी बज रही है, राधा नाच रही है। कृष्ण के तुम भक्त हो और स्त्रियों से ऐसा भय! यह क्या खाक
भक्ति हुई? चलो, अच्छा हुआ मैं आ गयी। यह तो
पता चल गया’ कि दुनिया में दो पुरुष हैं—एक परमात्मा और एक तुम।
बड़ी चोट पहुंची पुजारी को। गिर पड़ा पैरों पर। माफी मांगी कि मुझे क्षमा कर दो।
यह तो मुझे खयाल ही न रहा कि पुरुष तो एक ही है।
आज भी बहुत से जगहों पर ऐसा चल रहा
है. वैष्णव पंथ के स्वामीनारायण सम्प्रदाय के प्रमुख स्वामी और उनकी टोली कभी
स्त्रियों के सामने नहीं जाते हैं, उनके आस पास जाना भी स्त्रियों के लिए वर्जित
है। अक्षरधाम, मुंबई से लेकर पूरी दुनिया में इनके भव्य मंदिर हैं, स्वामी जी लोगों
के साथ मरसिटिज़ बेंज का काफिला चलता है,लेकिन कोई स्त्री उनके समक्ष नहीं जा सकती.
भगवान कृष्ण के लिए प्रेम रखने वाला कोई भी मनुष्य उनके जीवन से ऐसी सीख ले
सकता है ये तो समझ से परे है ।
अर्धनारीश्वर रूप में हमें यही बताया गया है की कोई भी मनुष्य पूर्ण पुरुष या
पूर्ण स्त्री नहीं है, हाँ जिस मनुष्य में पुरुष तत्व प्रधान होता है उसे हम पुरुष
कहते हैं और जिस मनुष्य में स्त्री तत्व प्रधान होता है उसे स्त्री कहते हैं.
सांख्य हमें ये बताता है की पुरुष तत्व चैतन्य है और स्त्रैण तत्व प्रकृति या
पदार्थ को दर्शाता है. विज्ञान ने भी हमें बताया है की 22-22 क्रोमोसोम समान होते
हैं 23वा क्रोमोसोम निर्धारित करता है की जन्म लेने वाला मनुष्य स्त्री या पुरुष
होगा. पुरुष तत्व में शारीरिक बल,स्वछंदता, आक्रामकता, प्रतियोगिता, विद्रोही गुण
शामिल हैं तो स्त्री तत्व या स्त्रैणत्व में वात्सल्य, भावुकता,निश्छलता,पोषक, समर्पण, क्षमा और धैर्य जैसे गुणों
का प्राधान्य हो जाता है।
कहने का तात्पर्य ये की यह निर्णय कौन लेगा की कौन कितना
पुरुष है और कौन कितनी स्त्री? और लिंग जो भी हो इश्वर ने मनुष्य का जीवन दिया है
तो भेदभाव करने वाले ये ठेकेदार कौन हैं? मैं ये नहीं कहता की सभी महिलाओं को शनि
शिंगनापुर जाना चाहिए, ये उनका व्यक्तिगत निर्णय है, हाँ यदि कोई जाना चाहे तो उस
पर कहीं से कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए. इसके साथ ही मेरा व्यक्तिगत मत है की
स्त्री और पुरुष अस्तित्व के पुष्प हैं, एक को दूसरे जैसे होने का प्रयास नहीं
करना चाहिए, जबकि समानता के नाम पर गुलाब का फूल, मोंगरा बनने का प्रयास करे यह भी
ठीक नहीं. प्रकृति की प्रतीक स्त्री जन्मदायिनी है और मेरा व्यक्तिगत मत है की वह
पुरुष के समान नहीं उससे श्रेष्ठतम है. फिलहाल के लिए सभी धर्मो के धर्मस्थलों में
लिंग आधारित भेदभाव तुरंत बंद होना चाहिए।