Thursday, January 28, 2016

पुरुष सत्तात्मक विचारधारा पर शनि की दशा

शनि शिंगनापुर के शनि मंदिर में कुछ महिलाओं के जबरिया प्रवेश की कोशिश के बाद हर जगह यह चर्चा छिड़ी हुयी है, कुछ दिनों पहले भी किसी महिला ने वहां पर जबरदस्ती प्रवेश कर तेल चढ़ाया था तब भी खूब बवाल हुआ था इस एक पूजास्थल की घटना ने देश के सभी पूजा स्थलों में इस तरह के लैंगिक भेदभाव को लेकर खूब चर्चा हो रही है

एक तरफ महिला अधिकारों के पैरोकार इसे पुरुष सत्तात्मक विचारधारा द्वारा खड़ी की गई बंदिशे बता रहे तो दूसरी ओर मंदिर प्रशासन एवं उनके समर्थक कभी पुरातन परंपरा, ग्रंथों में उल्लेख तो कभी शनि की शक्ति का स्त्रियों पर नकारात्मक प्रभाव को लेकर इस प्रथा को सही बता रहे हैं.ये निर्णय लेने का अधिकार स्त्रियों को होना चाहिए की वे वहां पर जाएँ या ना जाएँ , उनकी भलाई के नाम पर बंदिश लगाना पुरुषप्रधान समाज चाहने वाली कुंठित मानसिकता का प्रतीक है

इस घटनाक्रम में मुझे मीरा के जीवन की वो घटना याद आ गयी जिसमे कृष्ण के प्रेम में दीवानी मीरा मथुरा में राधाकृष्ण मंदिर पहुंची जहाँ स्त्रियों का प्रवेश वर्जित था। उसका पुजारी सावहगन स्त्रियों को नहीं देखता था। तीस साल से उस मंदिर में कोई स्त्री प्रवेश नहीं कर सकी थी। उसे रोकने द्वारपाल खड़े किये गए थे लेकिन वो भी उसकी भक्ति देख उसके गीतों में डूब गए और मीरा मंदिर के अंदर चली गयी. पुजारी आरती उतार रहा था। उसने स्त्री को देखा। उसके हाथ से आरती छूटकर गिर पडी। और क्रोधित हो कर कहा कि ए स्त्री, क्या तुझे द्वारपालों ने नहीं रोका? क्या तुझे मालूम नहीं है कि इस मंदिर में स्त्री का प्रवेश निषिद्ध है। द्वार पर बड़ेबड़े अक्षरों में लिखा है कि स्त्रीप्रवेश निषिद्ध है। तूने प्रवेश कैसे किया? मैं स्त्री को नहीं देखता हूं। तूने मेरी तीस साल की तपश्चर्या नष्ट कर दी।

 मीरा ने चुपचाप सुना और कहा कि मैं तो सोचती थी कि तुम कृष्ण के भक्त हो, लेकिन मैं गलती में थी। क्योंकि भक्त तो मानता है एक ही पुरुष हैवह परमात्मा, वह कृष्ण। बाकी तो हम सब गोपियां हैं। तो तुम सोचते हो दुनिया में दो पुरुष हैंएक कृष्ण और एक तुम? और क्या खाक तुम पुरुष हो। कृष्ण तो स्त्रियों से नहीं डरे। स्त्रियां नाचती रहीं उनके चारों तरफ। राधा की कमर में हाथ डालकर वे बांसुरी बजाते रहे। उनके तुम भक्त हो, जरा मूर्ति तो देखो! वहां भी राधा खडी थी मूर्ति में कृष्ण के बगल में ही। बांसुरी बज रही है, राधा नाच रही है। कृष्ण के तुम भक्त हो और स्त्रियों से ऐसा भय! यह क्या खाक भक्ति हुई? चलो, अच्छा हुआ मैं आ गयी। यह तो पता चल गयाकि दुनिया में दो पुरुष हैंएक परमात्मा और एक तुम।
बड़ी चोट पहुंची पुजारी को। गिर पड़ा पैरों पर। माफी मांगी कि मुझे क्षमा कर दो। यह तो मुझे खयाल ही न रहा कि पुरुष तो एक ही है।

आज भी बहुत से जगहों पर ऐसा चल रहा है. वैष्णव पंथ के स्वामीनारायण सम्प्रदाय के प्रमुख स्वामी और उनकी टोली कभी स्त्रियों के सामने नहीं जाते हैं, उनके आस पास जाना भी स्त्रियों के लिए वर्जित है। अक्षरधाम, मुंबई से लेकर पूरी दुनिया में इनके भव्य मंदिर हैं, स्वामी जी लोगों के साथ मरसिटिज़ बेंज का काफिला चलता है,लेकिन कोई स्त्री उनके समक्ष नहीं जा सकती.
भगवान कृष्ण के लिए प्रेम रखने वाला कोई भी मनुष्य उनके जीवन से ऐसी सीख ले सकता है ये तो समझ से परे है

अर्धनारीश्वर रूप में हमें यही बताया गया है की कोई भी मनुष्य पूर्ण पुरुष या पूर्ण स्त्री नहीं है, हाँ जिस मनुष्य में पुरुष तत्व प्रधान होता है उसे हम पुरुष कहते हैं और जिस मनुष्य में स्त्री तत्व प्रधान होता है उसे स्त्री कहते हैं. सांख्य हमें ये बताता है की पुरुष तत्व चैतन्य है और स्त्रैण तत्व प्रकृति या पदार्थ को दर्शाता है. विज्ञान ने भी हमें बताया है की 22-22 क्रोमोसोम समान होते हैं 23वा क्रोमोसोम निर्धारित करता है की जन्म लेने वाला मनुष्य स्त्री या पुरुष होगा. पुरुष तत्व में शारीरिक बल,स्वछंदता, आक्रामकता, प्रतियोगिता, विद्रोही गुण शामिल हैं तो स्त्री तत्व या स्त्रैणत्व में वात्सल्य, भावुकता,निश्छलता,पोषक, समर्पण, क्षमा और धैर्य जैसे गुणों का प्राधान्य हो जाता है।
कहने का तात्पर्य ये की यह निर्णय कौन लेगा की कौन कितना पुरुष है और कौन कितनी स्त्री? और लिंग जो भी हो इश्वर ने मनुष्य का जीवन दिया है तो भेदभाव करने वाले ये ठेकेदार कौन हैं? मैं ये नहीं कहता की सभी महिलाओं को शनि शिंगनापुर जाना चाहिए, ये उनका व्यक्तिगत निर्णय है, हाँ यदि कोई जाना चाहे तो उस पर कहीं से कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए. इसके साथ ही मेरा व्यक्तिगत मत है की स्त्री और पुरुष अस्तित्व के पुष्प हैं, एक को दूसरे जैसे होने का प्रयास नहीं करना चाहिए, जबकि समानता के नाम पर गुलाब का फूल, मोंगरा बनने का प्रयास करे यह भी ठीक नहीं. प्रकृति की प्रतीक स्त्री जन्मदायिनी है और मेरा व्यक्तिगत मत है की वह पुरुष के समान नहीं उससे श्रेष्ठतम है. फिलहाल के लिए सभी धर्मो के धर्मस्थलों में लिंग आधारित भेदभाव तुरंत बंद होना चाहिए

Tuesday, January 19, 2016

No one killed Rohit

बड़ी हिम्मत कर के हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला के मुद्दे पर लिख रहा हूँ, डर लगता है की पता नहीं कितने दोस्त सखा शुभचिंतक नाराज़ हो जाएँ, मुझे देशद्रोही या पागल मान लें.

हम तो आम आदमी हैं जी, सारी सच्चाई पता भी नहीं है, जो कुछ मीडिया सोशल मीडिया में देखा सुना उसी से मन में भाव पैदा हो जाते हैं . एक तरफ युवा छात्र रोहित का सुसाइड नोट है जो दिल को छूने वाला है, कैसा भावनात्मक ह्रदय रहा होगा उसका. एक पढ़ा लिखा पीएचडी कर रहा देश का युवा अपनी ईहलीला समाप्त कर ले ये देश के लिए कहीं से सही नहीं है, हम क्या ऐसे ही भारत को विश्व शीर्ष पर ले जा पाएंगे? 
[ दलित शब्द से मुझे व्यक्तिगत आपत्ति है इसलिए मैं इसका उपयोग नहीं करूँगा.]

तो दूसरी ओर मित्रों के पोस्ट आ रहे की बन्दे ने याकूब को फाँसी दिए जाने का विरोध किया था.याकूब की फाँसी भारतीय क़ानून के तहत दी गयी,उसका दोष सिद्ध हो चुका था,जो लोग फ़ाँसी दिए जाने का विरोध कर रहे थे उनकी आस्था भारतीय संविधान और कानून पर नहीं रही होगी और वे  इस बात पर अडिग हैं की ऐसे लोग भी देशद्रोही की श्रेणी में ही आते हैं.ऐसे में तो जितने लोगों ने भी विरोध किया था उन “देशद्रोहियों” का नंबर भी अब आने वाला है, हम वीर देशभक्त किसी को नहीं छोड़ेंगे? पाकिस्तान के खैबर पख्तून के घुटनाबुद्धि लोग ऐसी बातें करते हैं, हम इक्कीसवीं सदी के भारत में वैसा ही होना चाहते हैं क्या? यदि किसी के विचार बहुमत से न मिलें तो वे देशद्रोही हो गए क्या?’ कोई बता सकता है की ये "देश द्रोही डिटेक्टर" कहाँ मिलेगा?

भाई फाँसी की सजा तो वैसे धीरे धीरे पुरे विश्व में ख़त्म हो रही है, और जागरूकता बढ़ने पर एक दिन भारत में भी ये समाप्त हो जाएगी, वैसे मैं व्यक्तिगत रूप से याकूब की फाँसी का विरोध नहीं करता. उसके जघन्य अपराध को देखते हुए सही निर्णय लिया गया. लेकिन इसके साथ ही मेरे और जो भाई इस फैसले का लोकतान्त्रिक ढंग से विरोध कर रहे थे उन्हें देशद्रोही करार देना मैं कहीं से न्यायोचित नहीं मानता.

कश्मीरी पंडितों पर हुए अन्याय और जुल्म सुनकर मेरा दिल रोता है तो किसी अख़लाक़ ,किसी रोहित के मारे जाने पर भी दर्द होता है, दुःख होता है ये देख के की मेरे भाई मेरे प्यारे देश को कहाँ ले जाना चाहते हैं. ओवैसी, आज़म खान, गिरिराज सिंह, तथाकथित साध्वी प्रज्ञा,प्राची जैसे लोगों का खेल क्या हम अब भी समझ नहीं पाते हैं? किसी मित्र ने सोचने वाली बात पोस्ट की,जरा सोचिये इस छात्र रोहित की जगह गाय होती तो? इस ज़हर के खेल को समझों मित्रों, इसे फैलने,फैलाने में जाने अनजाने सहभागी ना बनों. 

    अपनी सुविधानुसार कभी कम्युनिस्टो ने अपनी विचारधारा थोपी,कभी कांग्रेस की तुष्टिकरण की निति ने, मोदी जी की सरकार उसी परंपरा को और अधिक दृढ़ता से लागु करती दिखाई दे रही है. पहली बार ही देखा है की मानव संसाधन मंत्रालय से किसी विश्वविद्यालय को 4-5 पत्र लिखे गए की ABVP के छात्र पर हमला हुआ था, छात्र को अस्पताल में भर्ती कर इलाज़ कराना पड़ा, आरोपियों पर सख्त कार्यवाही करो. और अब ये भी पता चला की ABVP के ये नेताजी का अस्पताल में अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ. ABVP के इन “देशभक्त” नेता के उदर में कहीं ये अपेंडिक्स भी आरोपी “देशद्रोही” छात्रों ने तो नहीं डाल दिया था.
 रोहित की आत्महत्या एक दुखद घटना है और इसके पीछे जो ज़हर फ़ैलाने का, समाज को बांटने का, अपनी विचारधारा थोपने का जो “देशद्रोही” कृत्य चल रहा वो तुरंत बंद होना चाहिए.

असहिष्णुता...........
उफ्फ, ये शब्द पिछले दिनों सुनसुन कर पक गया. क्या किसी ने कभी भी ये कहा की भारत असहिष्णु देश है? नहीं .
संवेदनशील लोगों द्वारा सिर्फ ये आवाज़ उठाई गयी की कुछ घटनाएँ समाज में बढती असहिष्णुता का प्रतीक है, ऐसा नहीं होना चाहिए, इसे रोका जाना चाहिए.बड़ा पाप हो गया उनसे, चुपचाप बैठे रहते तो कोई दिक्कत नहीं थी, देश का भला चाहते हैं, आवाज़ उठा दी तो हो गए देशद्रोही.
इनकी हिम्मत कैसे हुयी की देश में असहिष्णुता बढ़ रही है, इन देशद्रोहियों को सबक सिखाओ, इन्हें पकिस्तान भेजो, यहाँ उनके लिए कोई जगह नहीं है......................................भाई मेरे, इसी जुबां को असहिष्णुता कहते हैं.

( इस पोस्ट पर,आपको मेरे मत से भिन्न मत रखने का अधिकार है, गाली देने का नहीं )


Monday, January 18, 2016

मंतुराम प्रकरण कांग्रेस का नहीं, छत्तीसगढ़ की जनता का अंदरूनी मामला है..

अन्तागढ़ विधानसभा चुनाव में मंतुराम प्रकरण में एक विधायक की खरीद कांग्रेस का अंदरूनी मामला नहीं, छत्तीसगढ़ की जनता का अंदरूनी मामला है . जनता के द्वारा दिए गए जनमत को खरीदने बेचने का कार्य जनमत की हत्या है, लोकतंत्र की हत्या है.
छत्तीसगढ़ की जनता द्वारा दिए गए जनमत को डॉ "पुनीत" द्वारा खरीदने का जो "पुनीत" कार्य डॉ रमन सिंह ने किया है जिसमे उनके बहुमूल्य मूणत भी शामिल रहे हैं उसे छत्तीसगढ़ की जनता भूलेगी नहीं, ना उन्हें कभी माफ़ करेगी .
चोरी की गाडी खरीदने वाले, चोरी के गहने खरीदने वालों को जनता जिस नज़र से देखती है वही नजरिया अब आपको लेकर भी बन गया है. ये वाली खरीद तो चलो कांग्रेस के अंदरूनी झगडे के कारण सबके सामने आ गयी, उजागर हो गयी, अब ऊपर वाला ही जाने की डॉ रमण सिंह ऐसे कितने विधायक खरीद कर छत्तीसगढ़ में राज कर रहे हैं. विधायक विक्रय की कोई खुली टेंडर प्रक्रिया अपनाई गयी होती तो राज्य के कई उद्योगपति,धनपति भी अपनी किस्मत आजमा लेते. अब उनके लिए 7 करोड़,  10 करोड़ कोई बहुत बड़ी रकम नहीं है.

निर्वाचन आयोग ने खानापूर्ति करते हुए आपके ही प्रमुख सचिव से रिपोर्ट मांग ली . डॉ साहेब ने भी राज्य पुलिस प्रशासन से रिपोर्ट प्रस्तुत करवा दी.
वाह डॉ साहब, थानेदार के भ्रष्टाचार की रिपोर्ट हवालदार से जांच रिपोर्ट मंगा लिए.
छत्तीसगढ़ के लोग भोले हैं लेकिन अब इतने भी नहीं की आपके कुकृत्यों को समझ ना पाए .

हम क्या कर सकते हैं, राज्य में आपकी सरकार, केंद्र में आपकी सरकार, राज्य में विपक्ष में "वि" और "पक्ष" में बंटा है जिसमे कुछ तो आपके ही पक्ष में नज़र आते हैं. फिर भी हम विरोध करेंगे, राज्य की जनता को बताएँगे ,राज्यपाल महोदय से समय की गुहार लगाते रहेंगे, न्यायिक जांच की मांग करते रहेंगे.
मंतुराम प्रकरण में लोकतंत्र और जनमत की हत्या करने वाले डॉ रमन सिंह , उनके दामाद डॉ पुनीत गुप्ता, एवं बिकने और बेचने वाले कांग्रेस के नेताओं को छत्तीसगढ़ की जनता माफ़ नहीं करेगी.

Sunday, January 3, 2016

पहले रायपुर को दिल्ली जैसा प्रदूषित तो करो, फिर चलाना साइकिल

आज रायपुर नगर निगम  कमिश्नर के उद्गार पढ़ कर मन बड़ा उत्साहित हुआ,
तो मैंने सोचा आप साथियों को भी अपने उत्साह में शामिल करूँ.

हम तो रायपुर में रहते हैं जहाँ प्रदुषण का स्तर दिल्ली जैसा खतरनाक तो है नहीं, अभी तो नहीं है कम से कम. तो फिर ये क्या साइकिल वायकिल का तमाशा लगा रखा है. इससे कुछ होना जाना है नहीं.

बिलकुल सही कहा मित्तर साहब ने, अभी तो हमें दिल्ली जैसा प्रदुषण और दम घोंटू हवा का वातावरण पैदा करना है, उसके बाद इन सब क़दमों के बारे में सोचेंगे, अभी जैसा चल रहा, बिंदास चलने दें. 25-50 लोगों के महीने में एक दिन साइकिल चलने से वैसे भी कुछ होना जाना नहीं है.अरे हम तो वो लोग हैं जो कुंवा भी तब खोदने की सोचेंगे जब शहर धू धू कर जलता रहेगा. लेकिन पता नहीं क्यों चीटियों के एक एक दाने उठाकर पहाड़ खड़े करने की पिक्चर ध्यान में आ गयी, गाँधी के एक मुट्ठी नमक उठाने की याद आ गयी, छोटी छोटी शुरुवात ने दुनिया में कैसे बड़े बड़े बदलाव लाये उन घटनाओं की याद आ गयी. फिर लगा, अरे कमिश्नर साहेब, एक सही कदम चाहे वो कितना भी छोटा क्यों ना हो, वही तो एक दिन मुहीम बन जाती है या फिर ऐसे ही अचानक इतने बड़े लक्ष्य हासिल किये जाते हैं. कोई एक कदम बढ़ने की कोशिश भी करे तो हम सारा बैलेंस शीट निकालकर उसे थोथा साबित कर समाप्त करने में लग जाते हैं.

ऐसा तो कोई नहीं कहता की कार पूल ना करें, प्रदुषण रोकने के अन्य उपाय ना करें,पर मैं या रायपुर का कोई भी जिम्मेदार नागरिक महीने में एक दिन भी अगर योगदान देता है तो उसे व्यर्थ साबित कर भविष्य की सुखद संभावनाओं को ख़त्म करने का प्रयास ना करें तो ये रायपुर शहर के लिए अच्छा रहेगा.
आज लोगों के पास साइकिल नहीं है, कल हो सकती है, आज 25-50 लोग साथ हैं,कल पूरा शहर हो सकता है, और यदि ऐसा हो तो शायद कमिश्नर साहेब को कोई आपत्ति भी नहीं होगी क्यों की इसी हवा में वे भी सांस लेते हैं.
इसलिए मेरा सभी से आग्रह है की एक साइकिलिंग एक अच्छी शुरुवात है, इसे आगे बढ़ाने और शहर से प्रदुषण दूर करने हर छोटे बड़े प्रारंभ को प्रोत्साहित करें, उसमे शामिल हों, तभी हम अपने रायपुर को दिल्ली जैसे प्रदुषण की त्रासदी झेलने से पहले ही उस पर काबू पा सकेंगे .